Saturday 23 April 2011

भारत विकास की राह पर

बारहवीं पंचवर्षीय योजना (2012-17) में लक्ष्य होगा आर्थिक विकास की सालाना दर 9 से 9.5 फीसदी रखना, 100 फीसदी साक्षरता दर हासिल करना और विकास को समावेशी बनाना। इन लक्ष्यों से सहमत होते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का सुझाव है कि विकास को समावेशी बनाने के लिए अगली योजना में लक्ष्य ऐसे तय होने चाहिए, जिनकी निगरानी की जा सके। फिर उचित नीति एवं कोष आवंटन के साथ उन लक्ष्यों को पाने की कोशिश की जानी चाहिए।

11वीं योजना में भारत ने ऊंची आर्थिक विकास दर हासिल की। अंतरराष्ट्रीय मंदी और सूखे की स्थितियों के बावजूद यह दर 8.2 फीसदी रही। इस सफलता ने भारत को एक मजबूत आर्थिक शक्ति के रूप में स्थापित कर दिया है। फिर भी यह कामयाबी अधूरी लगती है, क्योंकि देश की आबादी का एक बड़ा हिस्सा आज भी बेहद गरीब है। जिस दिन योजना आयोग की पूर्ण बैठक में प्रधानमंत्री ने विकास को समावेशी बनाने पर जोर दिया, उसके ठीक एक दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को आगाह किया था कि हम दो तरह के भारत को कायम नहीं रहने दे सकते।

हम दुनिया को बताना चाहते हैं कि भारत दुनिया की सबसे मजबूत उभरती अर्थव्यवस्था है, लेकिन करोड़ों गरीबों की मौजूदगी विरोधाभास पैदा करती है। इसी क्रम में सुप्रीम कोर्ट ने गरीबी मापने की योजना आयोग की कसौटियों की भी आलोचना की, मगर यह विडंबना ही है कि उसी दिन योजना आयोग ने एलान किया कि देश में गरीबों की संख्या पांच फीसदी गिरकर अब 32 फीसदी रह गई है। सरकार समावेशी विकास की बात करती है, लेकिन इस बुनियादी पहलू को वह आज तक हल नहीं कर सकी है। क्या बारहवीं योजना के दौरान यह हो सकेगा? यदि नहीं तो फिर तमाम तय लक्ष्य हासिल होने के बावजूद दो तरह के भारत के बीच की खाई नहीं पाटी जा सकेगी और हमारे विकास की कहानी अधूरी रहेगी।

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